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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

विटामिन डी की कमी से होने वाली बीमारियां

सूर्य की रोशनी से मिलने वाले इस विटामिन की सबसे ज्यादा कमी महिलाओं में है जो लोग कम शारीरिक श्रम करते हैं वे भी इसकी कमी के अधिक शिकार है।
एक नए शोध में पाया गया है कि आस्ट्रेलिया में रहने वाले तीन में से एक व्यक्ति के शरीर में विटामिन डी की कमी है जिससे कई रोगो के जन्म लेने का खतरा है। ‘क्लीनिकल एंडोक्रिनोलोजी’ जर्नल में छपे इस शोध में 11000 लोगों से आंकड़े जुटाये गए हैं। इसमें पाया गया है कि सूर्य की रोशनी से मिलने वाले इस विटामिन की सबसे ज्यादा कमी महिलाओं में है।
साथ ही वे लोग जो कम शारीरिक श्रम करते हैं वे भी इसकी कमी के अधिक शिकार है। दीकन यूनिवर्सिटी के राबिन डैली ने बताया कि आस्ट्रेलिया में विटामिन डी कमी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। यह समस्या पूरे विश्व में भी होने जा रही है। सूर्य के प्रकाश में इसकी उपलब्धता के बावजूद आस्ट्र्रेलिया के लोग इसके शिकार हैं। उन्होंने बताया, ‘विटामिन डी की कमी से कई गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं। हड्डियों की कमजोरी, हृदय संबंधी रोग, ओस्टोपोरेसिस, मांसपेशियों में कमजोरी, कैंसर और टाइप टू का मधुमेह जैसी बीमारियां पनप सकती हैं। इसकी कमी जगह और मौसम पर भी निर्भर करती पाई गई है। सर्दियों में इसका स्तर और भी कम हो जाता है और आस्ट्रलिया के दक्षिणी हिस्सों में रहने वालों में इसकी ज्यादा कमी पाई गई।
 मोतियाबिंद की रफ्तार बढ़ाने के लिए जिम्मेदार
उम्रदराज होने पर आंखों में मोतियाबिंद होना आम बात है। यह बीमारी कार्निया पर जाला पड़ने से शुरू होती है और धीरे-धीरे आंखों की रोशनी जाने के साथ अंतत: अंधेपन पर जाकर खत्म होती है। अब वैज्ञानिक इस बीमारी के होने का एक महत्वपूर्ण कारण जान गए हैं। उनका कहना है कि इस कारण का पता चल जाने पर बीमारी का इलाज खोजना भी आसान हो जाएगा।
मिसौरी यूनिवर्सिटी में प्रमुख शोधकर्ता, भारतीय मूल के के. कृष्ण शर्मा के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने यह कारण तलाशा है। शर्मा के मुताबिक उम्रदराज होने पर एक खास तरह का प्रोटीन बनने से आंखों की क्रियात्मकता कम हो जाती है। फलस्वरूप 10 से 15 एमीनो एसिड्स से बने छोटे-छोटे पेप्टाइड बनने लगते हैं। ये पेप्टाइड मोतियाबिंद की रफ्तार बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
शर्मा का कहना है कि अब अगले चरण में हम पेप्टाइड को बनने से रोकने के तरीके तलाशेंगे। वह कहते हैं- यदि हम इसमें सफल रहते हैं तो उम्र के साथ आंखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को रोक सकते हैं।
गौरतलब है कि 70 से 80 साल की उम्र के 42 फीसदी और 80 साल से अधिक उम्र के 68 फीसदी लोगों में मोतियाबिंद की समस्या पाई जाती है।
मधुसुदन व्यास,
आयुर्वेदिक सलाहकार
उज्जेन
 

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